यह एक उन्माद रोग है, जिसमें रोगी सामान्य ढंग से सोचने मेहसूस करने या व्यवहार करने योग्य नहीं होता।
रोगी वास्तविकता से दूर रहने लगता है। हमारे देश की लगभग 1% जनसंख्या सिजोफ्रेनिया का शिकार है। ये जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उम्र 15 से 45 वर्ष के बीच आरंभ होता है और पुरुष- महिलाएं तथा अमीर- गरीब में सामान्य रूप से पाया जाता है।
कारण:-
इस रोग का सही कारण पूरी तरह से अभी तक पता नहीं चल सका है। लेकिन जो कारण माने जाते हैं वे इस प्रकार हैं:- : इसमें व्यक्ति को चिंता, घबराहट, डर, शंका, तनाव, पसीना आना, शरीर में कंपन, नींद न आना, बेचैनी जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
- 1-जीव वैज्ञानिक कारण:- अनुसंधान से संकेत मिलता है कि सिजोफ्रेनिया रोग में मस्तिष्क की जैव रसायन प्रणाली मैं एक स्पष्ट असंतुलन दिखाई पड़ता है। हालांकि दूसरा मत यह कहता है कि यह एक सतत विघटन की प्रक्रिया के कारण होता है
- अनुवांशिक कारण:- किसी व्यक्ति के वंशवृक्ष में अगर कोई कभी सिजोफ्रेनिया का शिकार रहा है तो उसके इस रोग से ग्रसित होने की संभावना सामान्य की तुलना में अधिक होती है।
- मनोसामाजिक कारण:- प्रायः देखा गया है कि अनुवांशिक रूप से असुरक्षित उन व्यक्तियों के, जो अत्यधिक संवेदनशील या तनावपूर्ण वातावरण में जीते हैं, सामान्य लोगों की तुलना में, सिजिफ्रेनिया के शिकार होने की संभावना अधिक होती है। बिमारी की शुरुआत ही अक्सर व्यक्ति के जीवन में किसी सदमे से होती जैसे कि किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु, कोई भारी असफलता, किसी का तिरस्कार या निराशा के कारण ऐसे संवेदनशील व्यक्ति सिजोफ्रेनिया के शिकार हो सकते हैं।
सीजोफ्रेनिया के लक्षण।
सिजोफ्रेनिया का प्रारंभ एकदम ना होकर धीरे धीरे होता है,इसके निम्नलिखित सामान्य लक्षण हैं:
- अरुचि एवं समाज विमुखता:- व्यक्ति अपने कार्य, पढ़ाई, परिवार एवं मित्रों में रुचि लेना कम कर देता है। कुछ पूछने पर चिड़चिड़ापन सा दिखाता है, या कभी सिर्फ शून्य भाव से देखता रहता है, काम पर जाना बंद कर देता है, अक्सर निरुद्देशय घूमता रहता है। नींद में गड़बड़ी और भूख की कमी आदि लक्षण भी दिखाई पड़ने लगते हैं।
- विभ्रम जिसको अंग्रेजी में डिल्यूजन भी कहा जाता है। कई बार ऐसे रोगी को किसी विषय या बात के बारे में पक्का विश्वास हो जाता है जो वास्तव में गलत होता है, और किसी प्रकार के तर्क सबूत से उसको बदला नहीं जा सकता। उसे ऐसा लग सकता है कि उसे तंग किया जा रहा है, लोग उसके विरुद्ध षडयंत्र कर रहे हैं, या उसे अपने जीवनसाथी की निष्ठा पर संदेह हो सकता है। उसे लग सकता है कि कोई बाहरी व्यक्ति उसके विचारों को नियंत्रित कर रहा है, जैसे कि उसके सिर में कोई रेडियो रिसीवर लगा दिया गया हो।
- मतिभ्रम इसको अंग्रेजी में hallucination भी कहते हैं। अधिक बिमारी की हालत में रोगी को अक्सर आवाजें सुनाई देती है और वह उनसे बातें या उनका जवाब देना शुरू कर देता है। वह कभी हंसता है, कभी रोता है, व कभी कभी इशारे भी करता है। कभी कभी रोगी को भयानक परछाई या आकृतियां दिखाई पड़ती है। भय के कारण वह अनियंत्रित हो सकता है और हिंसा अथवा आत्महत्या पर उतारू हो सकता है।
- व्यक्तिगत सफाई में अरुचि रोगी स्नान करने या अपने आप को साफ सुथरा रखने से मना कर देता है।
- भाव अभिव्यक्ति में असक्षमता। रोगी भावनात्मक आधार पर निष्क्रिय हो जाता है, वह उपयुक्त भावों को व्यक्त करने में असमर्थ हो जाता है और लगता है जैसे बाहरी दुनिया से उसका कोई रिश्ता ही ना हो। बिमारी की पहचान और उपचार जितनी जल्दी हो सके उसके अच्छे होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है। इसके लिए रोगी का किसी को किसी मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए।
3:- पेट में तेजाब जो गैस्ट्रिक न्युरोसिस भी कहलाता है। : इसमें रोगी का अल्ट्रासाउंड गैस्ट्रोस्कोपी, एंडोस्कोपी के आलावा बाकी पैथोलॉजी के अन्य टेस्ट बार बार नॉर्मल होने पर भी, पेट संबंधी शिकायतें बनी रहती है। लक्षण, जैसे कि पेट में तेजाब बनना, पाचन शक्ति कमजोर होना, बार बार दस्त लगना आदि लक्षण भी मन: स्ताप रोग से संबंधित होते हैं।
4:- भय जिसको जनरलाइज्ड एंजाइटी डिसऑर्डर भी कहते हैं, व बढ़े हुए रुप को फोबिया भी कहते हैं। : इसमें रोगी को बिना किसी कारण किसी वस्तु या विशेष स्थान से डर लगता है। जैसे उँचाई पर जाने का डर, भीड़ में जाने से डर, कुत्ते या अन्य किसी जानवर से डर, अंधेरे से डर, कैंसर होने का डर, आदि देखे जाते हैं।
सिजोफ्रेनिया के प्रकार।
वैसे तो सिजोफ्रेनिया के पांच प्रमुख प्रकार होते हैं। जिसमें कि पहला व सबसे ज्यादा पाया जाने वाला प्रकार है, पैरानॉयड सिजोफ्रेनिया। दूसरा डिसओर्गनाइज़ सीजोफ्रेनिया, जिसे विघटित लक्षण वाला सिजोफ्रेनिया भी कहते हैं। तीसरा कैटाटोनिक सीजोफ्रेनिया जिसमे मुख्यतः जड़ता और अकड़न के लक्षण दिखाई देते हैं। चौथा रेसिडुअल और पांचवा सिंपल।
सीजोफ्रेनिया के कुछ लक्षण जो प्रायः सभी प्रकारों में देखने को मिलते हैं वे इस प्राकार हैं:-
व्यक्ति को किसी विषय या बात के बारे में निश्चित व पक्की धारणा हो जाती है जो वास्तव में गलत होती है, और किसी प्रकार के तर्क या सबूत से उसको बदला नहीं जाता। जा सकता। इसमें रोगी महसूस करता है कि उसके कार्य, विचार व भावनाएँ उसके अपने नहीं है, तथा वे किसी बाहरी व्यक्ति के प्रभाव से उत्पन्न हो रहे हैं, उदाहरण के लिए, जैसे कोई व्यक्ति कहता है कि उसके द्वारा बोले जाने वाले शब्द उसके अपने नहीं है, बल्कि उसके पिता के हैं, या किसी विद्यार्थी को यह विश्वास होना कि उसके कार्य किसी योगी के नियंत्रण में है। कई कई बार रोगी को लगता है कि उसका कोई अंग या पूरा शरीर ही खत्म हो चुका है। उसे ऐसा भी लग सकता है कि अन्य लोग या फिर पूरी दुनिया ही समाप्त हो चुकी है। उदाहरणार्थ वह कह सकता है कि मेरे सर में मस्तिष्क ही नहीं रहा। मुझे खाना खाने की जरूरत नहीं क्योंकि मेरे शरीर के अंदर कुछ नहीं। कभी कभी व्यक्ति को लगता है जैसे उस पर कोई हमला कर रहा है उसे मारने की कोशिश कर रहा है। कई बार रोगी को भ्रम हो जाता है के आसपास के लोग उसके बारे में बातें कर रहे हैं या उसकी बुराइ कर रहे हैं, चुगली कर रहे हैं। उसे लगने लगता है कि उसके इर्द गिर्द होने वाली घटनाओं का उससे संबंध है, उदाहरण के लिए, किसी औरत को यह विश्वास हो गया हो कि रेडियो पर आने वाला प्रोग्राम या उसकी खबर उसके बारे में कही जा रही है। जैसे एक रोगी ने देखा कि उसके चिकित्सक के ऑफिस का नंबर वही था जो उसके पिता के कमरे का अस्पताल में नंबर था और उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। इस पर उसे विश्वास हो गया कि मेरे पिता की मृत्यु से इस डॉक्टर का कोई ना कोई संबंध रहा है। कई बार शरीर की क्रियायों या रचना के बारे में गलत विश्वास होने लगता है, जैसे कोई कहता है कि मेरा मस्तिष्क सड़ गया है, वा उसमें से दुर्गंध आ रही है। पुरुष या स्त्री मरीज को एक दूसरे की निष्ठा पर संदेह होने लगता है। सिज़ोफ्रेनिया ऐसा रोग नहीं है जिसमे इलाज की कोई आशा ना हो। उसमें सामाजिक पुनर्वास की काफी संभावना रहती है, लेकिन स्वास्थ्य लाभ धीमी गति से होता है। यह आवश्यक है के परिवार के सदस्य रोगी से व्यवहार के समय धैर्यपूर्वक रहे। यह भी सही है कि रोगी अपनी बिमारी के लिए दोषी नहीं है और ना ही उसके परिवार के सदस्य, लेकिन उसका स्वास्थ्य लाभ बहुत हद तक उसके सामाजिक वातावरण, मित्रों, संबंधियों और सबसे अधिक उसके परिवार पर निर्भर करता है। हमें ज्ञात होना चाहिए कि ऐसे भी क्षण आ सकते हैं, की परिवार के ही किसी सदस्य ( जो रोगी की देखभाल करता हो), को सहायता, प्रोत्साहन एवं सांत्वना की जरूरत हो सकती है, इसके लिए हम सदैव आपकी सेवा के लिए तत्पर हैं, चाहे वह दवा चिकित्सा हो, चाहे सलाह मशवरा या कोई और। यदि आपको किसी अन्य सहायता या जानकारी की आवश्यकता हो तो निःसंकोच संपर्क करें।