भारतीय समाज में अधिकतर बिल्कुल शुद्ध मनोवैज्ञानिक एवं व्यवहारिक लक्षणों को अनदेखा किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक सोच घबराहट या फैसले ना लेने की बात करता है, तो उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप परिवार के सदस्य उससे कहते हैं “आप सोचना बंद कर दो, तुम ठीक हो जाओगे” ।
वहीं यदि मरीज़ किसी शारिरिक लक्षण की शिकायत करता हो तो वही घरवाले उसको सहानुभूति पूर्वक डॉक्टर को दिखाने की सलाह देते हैं, यही कारण है कि भारतीय समाज में मनोवैज्ञानिक लक्षणों को, और इनसे जुड़ी बीमारियों को दूसरी बीमारियों की तरह महत्त्व नहीं देते।
साइकोसोमैटिक डिसॉर्डर के मरीज दूसरे शारीरिक लक्षणों के माध्यम का प्रयोग करते हैं। ऐसे लक्षणों की उत्पत्ति जानबूझकर नहीं होती। मरीज पर इसका कोई नियंत्रण नहीं होता। ऐसे लक्षण मरीज के किसी भाग से भी संबंध रख सकते हैं। जैसे कि
- पेट के लक्षण:- उल्टी आना, पेट दर्द, गैस, कब्ज, दस्त आदि।
- दर्द के लक्षण:- जैसे कि टांगों में, कमर में, जोड़ों में दर्द, शारीरिक कमजोरी, टांगों में भारीपन तथा हथेलियों में अत्याधिक पसीना आना।
- छाती से जुड़े लक्षण:- जैसे कि सांस चढ़ना, छाती में दर्द, दम घुटना।
- सिर से संबंधित लक्षण:- भूलने की आदत सिरदर्द, चक्कर आना, सिर में भारीपन होना।
जब ये लक्षण किसी अन्य शारीरिक बिमारी से मेल न खायें और टेस्ट आदि सभी सामान्य हों, तब इसको साइकोसोमैटिक डिसोर्डर की श्रेणी में रखा जाता है।