आम लोगों व कुछ चिकित्सकों में यह धारणा पाई जाती है की मंदबुद्धि एक प्रकार का रोग है, पर यह रोग न होकर एक दशा है। जिसमें किसी बालक या व्यक्ति की बुद्धि, योग्यतायें उसकी आयु के सामान्य व्यक्ति के बराबर विकसित नहीं हो पाती। प्राचीन समय से हम सभी को ये ज्ञात है की कुछ लोगों में जीवन की मूलभूत योग्यताओं, जैसे चलना फिरना, खाना पीना और बोलना आदि व शैक्षिक योग्यता आदि की कमी पाई जाती है। ऐसे लोगों को मंदबुद्धि करार दे दिया जाता है। पहले केवल चिकित्सकीय जांच परख जिसे क्लिनिकल इंप्रेशन कहते हैं, के आधार पर मंदबुद्धि होने का पता लगाया जाता था। जिससे केवल अत्यधिक मंदबुद्धि व्यक्ति का ही पता लग पाता था। और कभी कभी तो इसे कोई अन्य मानसिक रोगी ही मान लिया जाता था, मामूली मंदबुद्धि बालक का पता लगाना भी कठिन होता था।
परीक्षण:-
20 वीं शताब्दी के आरंभ में मंदबुद्धि या मेंटल रिटार्डेशन की परिभाषा व उसके निदान की दिशा में कुछएक बुद्धि फलांक परीक्षण आई क्यू टेस्ट लाए गए। बुद्धि, फलांक परीक्षण, मानसिक आयु यानी मेंटल एज व वास्तविक आयु, क्रोनोलॉजिकल एज का अनुपात है। आककल किसी व्यक्ति के बौद्धिक स्तर की पहचान के लिए जो आधार लिया जाता है, वह इस प्रकार है।
- व्यक्ति की सामान्य मानसिक योग्यता यदि औसत से कम हो, जो बुद्धि परीक्षण या आइक्यू टेस्ट से ज्ञात किया गया है, उसका बुद्धि फलांक 70 या उससे कम होता है।
- व्यक्ति का उसकी आयु के अनुसार सामान्य सामाजिक व्यवहार, जिसे जनरल एडेप्टिव बिहेवीयर भी कहा जाता है, जिसमें उसकी कार्यकुशलता, क्षमताएं, सामाजिक दायित्व, बोलचाल व रहन सहन का ढंग तथा आत्मनिर्भरता के स्तर का पता भी लगाया जा सकता है।
- विकास की अवधि या डेवलपमेंटल पिरियड बच्चों के जन्म से 18 वर्ष की आयु के दौरान ही बुद्धि का पूर्ण विकास होता है तथा ऐसा न हो पाने कि स्थिति में उसे मंदबुद्धि कहा जाता है।
मंदबुद्धि के कारण
मंदबुद्धि के कारण का अक्सर पता नहीं चलता, व यह बिना किसी कारण के भी हो सकता है। कुछ कारण जिनसे यह दशा उत्पन्न हो सकती है, वे इस प्रकार है।
- गर्भवती महिला को अच्छी खुराक करना मिलना।
- कोई रोग या तेज बुखार का हो जाना।
- कोई चोट लगने से बच्चे के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ना
- प्रसव के दौरान कोई भी कठिनाई होना, बच्चे के चोट लगना या देर से सांस आना।
- बच्चे को बार बार रोग होना,सिर में चोट लगना, दिमागी बुखार होना या कुपोषण इत्यादि भी इसके कारण हो सकते हैं।
- अनुवांशिक कारण। जिसमें कि यदि घर में किसी सदस्य को मंद बुद्धि की समस्या हो ऐसे परिवार में, बच्चों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है, ऐसा प्रायः देखा जाता है।
कुछ बीमारियां जैसे कि फिनाइल किटोनयूरिया, हाइपोथाइरॉयडिज़्म आदि भी कुछ ऐसी अवस्थाएँ हैं जिनमें मंदबुद्धि देखने को मिल सकती है।
मंदबुद्धि की जांच कैसे की जाती है?
- रक्त पेशाब व अन्य लेबोरेट्री परीक्षण।
- हार्मोनल व मेटाबॉलिक कारणों की जांच।
- सीटी स्कैन व ई.ई.जी।
- एक्स रे।
- बुद्धि फलांक परीक्षण, जिसे आइक्यू टेस्ट भी कहते हैं। मंदबुद्धि के किसी भी कारण को पता लगाने के लिए यह टेस्ट करवाना बहुत जरूरी होता है।
क्या इसका इलाज संभव है?
मंदबुद्धि का निदान व्यक्ति की उस समय की योग्यता पर निर्भर करता है, जब बुद्धि फलाँक का परीक्षण किया जाता है। यह एक आम धारणा है कि मंदबुद्धि का निदान स्थायी या हमेशा के लिए होता है, यद्यपि अधिक मंदबुद्धि स्तर के व्यक्ति प्रायः सारी उम्र उसी स्तर पर रहते हैं, लेकिन मामूली तौर पर मंदबुद्धि बालक के बौद्धिक स्तर में बेहतर अनुकूल वातावरण, प्रशिक्षण, ट्रेनिंग व प्रोत्साहन से सुधार किया जा सकता है।
मंदबुद्धि के इलाज की अन्य पद्धतियां।
- व्यावहारिक परीक्षण। जैसा पहले बताया गया है कि अधिक मंदबुद्धि के स्तर पर,इलाज बहुत कठिन है, या कहें कि इसमें रोगी की ठीक होने कि संभावना न के बराबर होती है, लेकिन मामूली या या मध्यम स्तर के मंदबुद्धि बालक के बौद्धिक स्तर को, कुछ प्रयासों से मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ द्वारा ठीक किया जा सकता है। बेहतर वातावरण प्रशिक्षण और प्रोत्साहन से भी मरीज़ के सुधार में काफी अच्छे नतीजे दिखाई पड़ते है।इस वातावरण प्रशिक्षण में, बच्चों के सामाजिक वातावरण व मान्यताओं के अनुसार उसे, सही प्रकार से बोलना, सही प्रकार से खाना पीना, सही कपड़े आदि पहनना, चीजों को पहचानना, गिनती गिनना, पढ़ना लिखना, खेल खेलना, व डिजाइन आदि बनाना जेसे कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है।
- मंदबुद्धि के कारण का इलाज जैसे ही फिनायल कीटोनयूरिया, हाइपोथायरायडिज्म आदि रोग जिनकी वजह से मंदबुद्धि हुई है, इन रोगों का ईलाज भी इस समस्या को ठीक कर सकता है।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण या वोकेशनल ट्रेनिंग। बड़ा होने पर व्यक्ति किसी पर बोझ न बने, व आत्मनिर्भर बन सके, इसके लिए उसकी योग्यता व रुचि के अनुसार व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है।